समकालीन भारतीय साहित्य पत्रिका ( नवेम्बर- दिसम्बर 1997 अंक, पृष्ठ-144) देख रहा था. कुछ दिल को छू गया. अचला शर्मा की एक कविता ' अब भी आते हैं सपने ' शीर्षक से-
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कितना अच्छा है कि
अब भी आते हैं सपने
कुछ गहरी नींद में चलते
कुछ खुली आँखों में बहते
कुछ सुप्त और चेतन की संधि - रेखा पर
असमंजस की तरह झिझकते
पर अब भी आते हैं सपने !
बल्कि अक्सर आते हैं
जहाँ - जहाँ चुटकी काटते हैं
वहां - वहां भीतर का बुझता अलाव
फफोला बन उभर जाता है
देह का वो हिस्सा
जैसे मौत से उबर आता है
कितना अच्छा है
कि अब भी आते हैं सपने !
आते हैं
तो कुछ पल ठहर भी जाते हैं
चाहे मुसाफिर कि तरह
लौट जाने के लिए आते हैं,
पर लौट कर कभी -कभी
चिट्ठी भी लिखते हैं
कहते हैं बहुत अच्छा लगा
कुछ दिन
तुम्हारी आँखों में बस कर
तुमने आश्रय दिया
हमें अपना समझ कर,
आभार !
कितना अच्छा है
कि अब भी आते हैं सपने
धुप की तरह, पानी की तरह
मिटटी और खाद की तरह
तभी तो
सफ़र का बीज
ऊँचा पेड़ हो गया है
छाँव भले कम हो
भरा - भरा हो गया है,
उसपर लटके हैं
कुछ टूटे, कुछ भूले, कुछ अतृप्त सपने
कुछ चुभते-से, दुखते-से
पराये हो चुके अपने,
फिर भी आते हैं सपने
कितना अच्छा है
कि अब भी आते हैं सपने !
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