क्यों..
हर उस हर्फ़ में
तुम्हारे नाम की ख़ुश्बू आती है ....
जो
मेरी कलम से उठते हैं ....
मेरे ज़ेहन में तुम्हारे वज़ूद
की ख़ुश्बू है,
मेरी ज़िन्दगी में
तुम्हारे इंतज़ार की ख़ुश्बू है
शायद इसीलिए ......!
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Thursday, July 8, 2010
क्या हवाओं का रुख है
क्या हवाओं का रुख है परों से पूछिये
कैसे लोग हैं यहाँ पर घरों से पूछिये
मेरी ज़िन्दगी में कितनी तनहाइयाँ हैं
मेरे आंसुओं में डूबे दरों से पूछिये
आप हो मेहमान या अजनबी मेरे लिए
इन दीवारों और इन दरों से पूछिये
खुदा का दर हैया कि मायूसियों का बोझ
पूछना है तो इन झुके सरों से पूछिये
कैसे लोग हैं यहाँ पर घरों से पूछिये
मेरी ज़िन्दगी में कितनी तनहाइयाँ हैं
मेरे आंसुओं में डूबे दरों से पूछिये
आप हो मेहमान या अजनबी मेरे लिए
इन दीवारों और इन दरों से पूछिये
खुदा का दर हैया कि मायूसियों का बोझ
पूछना है तो इन झुके सरों से पूछिये
क्या यही कम है ...
कोई हस्ती नहीं इंसान हूँ, क्या यही कम है
तेरी आरज़ू में बदनाम हूँ, क्या यही कम है
तेरी महफ़िल में ग़ैरों का हुजूम है बहोत
मैं एक मेहमां बेनाम हूँ क्या यही कम है
न मेरी आरज़ू है न मेरी जुस्तजू तेरे सिवा
बिन बुलाया सही मेहमान हूँ क्या यही कम है
तेरे निबाह से मैं खफा नहीं हूँ हमदम
तेरा रिश्ता एक बेनाम हूँ क्या यही कम है
दो घड़ी फ़ुरसत जो मिले, बताना मुझे
मैं दिल का एक पैग़ाम हूँ क्या यही कम है
तेरी आरज़ू में बदनाम हूँ, क्या यही कम है
तेरी महफ़िल में ग़ैरों का हुजूम है बहोत
मैं एक मेहमां बेनाम हूँ क्या यही कम है
न मेरी आरज़ू है न मेरी जुस्तजू तेरे सिवा
बिन बुलाया सही मेहमान हूँ क्या यही कम है
तेरे निबाह से मैं खफा नहीं हूँ हमदम
तेरा रिश्ता एक बेनाम हूँ क्या यही कम है
दो घड़ी फ़ुरसत जो मिले, बताना मुझे
मैं दिल का एक पैग़ाम हूँ क्या यही कम है
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