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Thursday, July 8, 2010

क्या यही कम है ...

कोई हस्ती नहीं इंसान हूँ, क्या यही कम है
तेरी आरज़ू में बदनाम हूँ, क्या यही कम है

तेरी महफ़िल में ग़ैरों का हुजूम है बहोत
मैं एक मेहमां बेनाम हूँ क्या यही कम है

न मेरी आरज़ू है न मेरी जुस्तजू तेरे सिवा
बिन बुलाया सही मेहमान हूँ क्या यही कम है

तेरे निबाह से मैं खफा नहीं हूँ हमदम
तेरा रिश्ता एक बेनाम हूँ क्या यही कम है

दो घड़ी फ़ुरसत जो मिले, बताना मुझे
मैं दिल का एक पैग़ाम हूँ क्या यही कम है

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